Priyanka Pandit Instagram – Bhagavad Gita: Chapter 3, Verse 34
इन्द्रियस्येन्द्रियस्यार्थे रागद्वेषौ व्यवस्थितौ।
तयोर्न वशमागच्छेत्तौ ह्यस्य परिपन्थिनौ
इन्द्रियों का इन्द्रिय विषयों के साथ स्वाभाविक रूप से राग और द्वेष होता है किन्तु मनुष्य को इनके वशीभूत नहीं होना चाहिए क्योंकि ये आत्म कल्याण के मार्ग के अवरोधक और शत्रु हैं।
इन्द्रियाँ अपने इन्द्रिय विषयों की ओर आकर्षित होती हैं और उनके आपसी सामन्जस्य से सुख और दुख की अनुभूति होती है। जिह्वा स्वादिष्ट व्यंजनों का स्वाद चखने की आदी होती है और कड़वा स्वाद उसे पसंद नहीं आता। मन बार-बार सुख और दुख से जुड़े विषयों का चिन्तन करता है। इन्द्रिय विषयों के सुख के अनुभव से आसक्ति और दुख के अनुभव से विरक्ति उत्पन्न होती है। श्रीकृष्ण अर्जुन को न तो आसक्ति और न ही विरक्ति के वशीभूत होने को कहते हैं।
अपने सांसारिक कर्तव्यों का पालन करते हुए हमें अनुकूल और प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। हमें न तो अनुकूल परिस्थितियों के लिए ललचाना चाहिए और न ही प्रतिकूल परिस्थितियों की उपेक्षा करनी चाहिए। जब हम मन और इन्द्रियों के रुचिकर और अरुचिकर दोनों विषयों की दासता से मुक्त हो जाते हैं तब हम अपनी अधम प्रकृति से ऊपर उठ जाते हैं और फिर हम अपने कर्त्तव्यों का निर्वाहन करते समय सुख और दुख दोनों में समभाव से रहते हैं। तब हम वास्तव में अपनी विशिष्ट प्रकृति से मुक्त होकर कार्य करते हैं। | Posted on 12/May/2024 11:50:17
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